पंजाबी हेडलाइन(हरमिंदर सिंह किट्टी) 6 अक्टूबर 1973 के दिन अरब देशों ने मिलकर इजराइल पर हमला कर दिया। इजराइल के बचाव में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन सामने आए। उन्होंने इजराइल को 18 हजार करोड़ रुपए की मदद देने की घोषणा कर दी।
अमेरिका के इस फैसले से नाराज होकर ओपेक देशों ने तेल के उत्पादन में भारी कटौती कर दी। ऑयल प्रोडक्शन कम कर अमेरिका को सबक सिखाने की पूरी प्लानिगं सऊदी के किंग फैसल के नेतृत्व में हुई।
नतीजा ये हुआ कि 1974 आते-आते दुनिया में तेल की किल्लत हो गई। तेल की कीमतें 5 डॉलर प्रति बैरल से 25 डॉलर प्रति बैरल हो गई। यानी तेल की कीमतों में 5 गुना बढ़ोतरी हुई। इसका सबसे ज्यादा असर अमेरिका और उसके अमीर साथी देशों पर पड़ा। वहां आर्थिक मंदी की वजह से महंगाई आसमान छूने लगी।
ठीक 50 साल बाद एक बार फिर अक्टूबर के महीने में इजराइल पर हमला हुआ है। इस स्टोरी में जानेंगे कि इजराइल–हमास जंग की वजह से क्या एक बार फिर दुनिया में तेल की कीमतें आसमान छूने लगेंगी…
ब्लूमबर्ग के मुताबिक, इजराइल और हमास के बीच जंग अभी शुरू ही हुई है। ऐसे में सटीक बता पाना मुश्किल है कि इसका तेल के बाजार पर कितना असर पड़ेगा। हालांकि इजराइल और ईरान के एक्शन पर काफी सारी चीजें निर्भर करेंगी।
इसके बावजूद तेल के बाजार पर जंग का क्या असर पड़ेगा, इसे 8 सिनेरियो के जरिए समझें .…
- यह जंग अक्टूबर 1973 की तरह नहीं है। तब अरब देशों ने एकजुट होकर इजराइल पर हमला किया था। इस बार मिस्र, जॉर्डन, सीरिया, सऊदी अरब और बाकी अरब देशों ने अभी तक खुद को इस जंग से किनारे रखा है। ऐसे में दोबारा 1973 जैसे हालात होने की संभावना कम है।
- अभी के तेल बाजार में अक्टूबर 1973 जैसी स्थिति नहीं है। उस समय तेल की मांग बढ़ रही थी, लेकिन किसी देश के पास रिजर्व तेल उतना नहीं था। आज के समय में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की वजह से तेल की मांग तब की तुलना में घटी है।
हालांकि अब भी सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के पास तेल उत्पादन की अतिरिक्त क्षमता है। कई बार इसका इस्तेमाल वो तेल कीमतों को कंट्रोल करने के लिए भी करते हैं। इस जंग की वजह से ये दोनों देश ऐसा कोई बड़ा फैसला लेते फिलहाल नहीं लगते हैं।
- आज के समय में ओपेक देश काफी ज्यादा तेल की कीमत बढ़ाने के इच्छुक नहीं हैं। सिर्फ कुछ डॉलर तक कीमत बढ़ाने के लिए ये देश सहमत हैं। सऊदी अरब तेल की कीमतों को 100% से अधिक बढ़ाकर 200 डॉलर प्रति बैरल तक ले जाने की बजाय अभी कीमत 85 डॉलर से 100 डॉलर प्रति बैरल तक रखने के पक्ष में है। वहीं, अक्टूबर 1973 में तेल उत्पादन घटाकर ओपेक देशों ने पेट्रोलियम कीमतों में लगभग 70% की बढ़ोतरी की थी।
- इजराइल-हमास जंग का असर 2023 और 2024 में तेल बाजारों पर पड़ सकता है। सबसे ज्यादा असर तब देखने को मिलेगा, जब इस जंग में ईरान की सीधे-सीधे एंट्री होगी। 2019 में यमन के हूती विद्रोहियों ने सऊदी की तेल प्रोडक्शन फैसिलिटीज पर हमला कर दिया था। इसमें ईरान का हाथ बताया गया था।
इसका असर दुनिया के तेल सप्लाई चेन पर पड़ा था। एक बार फिर अगर इजराइल किसी तरह से खुद पर हुए हमले का जिम्मेदार ईरान को ठहराता है तो वो फिर दूसरे संगठनों के जरिए ऑयल फैसिलिटीज पर हमले करवा मार्केट को प्रभावित करने की कोशिश करेगा।
- रूस-यूक्रेन जंग की वजह से अमेरिकी पाबंदी के बावजूद ईरान ने दुनिया भर में तेल सप्लाई की। दुनिया में तेल की कीमत ज्यादा न बढ़े इसके लिए अमेरिका ने जानबूझकर इस ओर ध्यान नहीं दिया।
परिणाम ये हुआ कि ईरान का तेल उत्पादन लगभग 7,00,000 बैरल प्रति दिन बढ़ा। अब अगर एक बार फिर अमेरिका ईरान के तेल खरीदने-बेचने पर रोक लगाता है तो दुनिया में तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है।
- इजराइल-हमास जंग की वजह से मिडिल ईस्ट में अगर तेल संकट होता है तो इससे रूस को लाभ होगा। अमेरिका ईरान के खिलाफ प्रतिबंध लागू करता है तो इसका फायदा रूस को मिलेगा।
रूस एक बार फिर से ओपेक+ देशों के साथ मिलकर दुनिया में तेल की कीमत बढ़ाकर लाभ कमाने की कोशिश कर सकता है। अमेरिका के ईरानी तेल निर्यात पर एक्शन नहीं लेने की एक वजह यह है कि इससे रूस को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। मतलब साफ है कि इस जंग की वजह से ईरान पर एक्शन लेते ही तेल की कीमत बढ़ना तय है।
- सऊदी अरब और इजराइल के बीच अमेरिका के जरिए एक बड़ी डील होने वाली थी। माना जा रहा था कि इस डील के बाद सऊदी अरब, इजराइल को देश के तौर पर मान्यता देने वाला था। इससे पहले ही हमास ने हमला कर दिया। भले ही सऊदी अरब हमास से नाराज है, लेकिन सऊदी के लोगों का अभी भी 1973 की तरह फिलिस्तीन की तरफ झुकाव है। ऐसे में घरेलू राजनीति की वजह से सऊदी कोई एक्शन लेता है तो तेल की कीमतों पर सीधा असर पड़ेगा। इससे तेल की कीमतें प्रति बैरल 100 डॉलर के पार भी जा सकती हैं।
- 1973 जैसे हालात इसलिए भी नहीं बनेंगे क्योंकि अमेरिका के पास काफी ज्यादा रिजर्व तेल है। अमेरिका अपने रिजर्व तेल को बाजार में पंप करना शुरू कर देगा। हालांकि इसके बावजूद ईरान के किसी फैसले से तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं। इसकी एक वजह यह है कि रूस-यूक्रेन जंग के बाद अमेरिका के पास रिजर्व तेल भंडार 40 साल में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है, फिर भी अमेरिका के पास ऐसे किसी संकट से निपटने के लिए पर्याप्त तेल है।