बिल्ला, पर्चा और लाउडस्पीकर से प्रचार की बात अब पूरी तरह से बेमानी हो चुकी है। पार्टी और प्रत्याशियों के प्रचार की कमान अब सोशल मीडिया ग्रुप ऑपरेट करने वाले इन्फ्लूएंसर के हाथों में पहुंच गई है।
लोकतंत्र के महापर्व ने आभासी दुनिया में भी रौनक ला दी है। बिल्ला, पर्चा और लाउडस्पीकर से प्रचार की बात अब पूरी तरह से बेमानी हो चुकी है। पार्टी और प्रत्याशियों के प्रचार की कमान अब सोशल मीडिया ग्रुप ऑपरेट करने वाले इन्फ्लूएंसर के हाथों में पहुंच गई है। पार्टियों की नजर में इस प्लेटफार्म पर कई ऐसी शख्सियतें हैं, जिनकी पहचान कविता-कहानी लिखने-पढ़ने, मीम्स-कार्टून बनाने, स्टैंडअप कॉमेडी और लोकगीत व संगीत सुनाने से बनी है। इसमें सियासतदां होना जरूरी नहीं, लेकिन लिखावट में कसावट और पोस्ट में तुकबंदी होनी चाहिए। साथ में पहुंच भी लाखों में हो। वहीं, अलग-अलग इलाकों में सक्रिय यूट्यूबर भी इसमें फिट हैं। एक ही क्लिक से प्रत्याशी की बात मतदाताओं के घर तक पहुंच जा रही है।
इनकी रील्स, मीम्स, कार्टून, फोटो पोस्ट, छोटे-छोटे, लेकिन प्रभावी पॉडकास्ट व सनसनीखेज खबरों के जरिये आम यूजर की जिंदगी में दबे पांव सियासी संदेश घोला जा रहा है। इन्फ्लूएंसर व यू-ट्यूबर को इसकी कीमत भी मिल रही है। इनकी फाॅलोइंग के हिसाब से हर पोस्ट के लिए पांच से दस हजार तक के प्रस्ताव हैं। कई मामलों में तीस से पचास हजार रुपये तक भी दिए जा रहे हैं। पार्टियां इस तरह के बड़े इन्फ्लूएंसर पर भी नजर रख रही हैं। दरअसल, लोकसभा चुनाव के लिए यू-ट्यूब समेत सोशल मीडिया प्लेटफार्म बड़ा बाजार बनकर उभरा है। इससे पलक झपकते ही नेताजी के बयान, दिनचर्या और सियासी मुद्दे बड़ी आबादी तक पहुंच रहे हैं। त्वरित टिप्पणी या वार-पलटवार एक क्लिक पर लोगों की नजरों के सामने होता है। माध्यम के तौर पर इन्फ्लूएंसर की पहचान की जा रही है। इसके लिए प्रत्याशी ने भी बाकायदा एक टीम का गठन किया गया है। वर्चुअल वार रूम के सहारे मुहिम को आगे बढ़ाया जा रहा है। व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम और एक्स पसंदीदा प्लेटफॉर्म:
एक्सपर्ट बताते हैं कि पार्टियां ऐसे सोशल मीडिया मंच को चुनती हैं, जो बिना ज्यादा पाबंदियों के तेजी से जनता से जोड़ने में मदद करते हैं। व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, फेसबुक और एक्स जैसे कई मंच हैं, जो जनता के एक खास वर्ग की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
एआई भी मददगार
प्रचार अभियान में एआई की भी मदद ली जा रही है। खासतौर पर ऐसी परिस्थिति को दिखाने के लिए भौतिक रूप से जिसका वीडियो नहीं बनाया जा सकता है। स्टोरी बनाकर एआई की मदद से वीडियो या पॉडकास्ट के फॉर्मेट में कंटेंट तैयार किया जा रहा है।
मोबाइल के इनबॉक्स में आ रहे मैसेज
दिल्ली-एनसीआर में बसे पहाड़ के लोगों में लोकप्रिय एक हास्य कलाकार की फाॅलोइंग करीब एक लाख है। उनका कहना है कि बीते एक सप्ताह से इनबॉक्स में अलग-अलग दलों से मैसेज आए हैं। हर वीडियो पर 15 से 30 हजार रुपये देने का ऑफर है। इसके बदले में उनके पक्ष में वीडियो बनाकर अपने सोशल मीडिया हैंडल पर अपलोड करना होगा। साथ ही, विरोधी पार्टी से दूर रहने की नसीहत भी दी गई है। इसके लिए चुनाव तक के लिए करार करने को भी कहा जा रहा है।
असरदार साबित हो रहे एन्फ्लूएंसर
पॉलिटिक एडवाइजर के संस्थापक और कभी आम आदमी पार्टी के आईटी प्रकोष्ठ के प्रमुख रहे अंकित लाल ने बताया कि राजनीतिक दल मतदाताओं से जुड़ने के लिए चुनाव प्रचार अभियान में पहले डिजिटल माध्यम को चुनते हैं। इसमें सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर अहम है। इसके लिए देखा जाता है कि इन्फ्लूएंसर विशेष की फॉलोइंग कितनी है, उसके फॉलोअर्स किस तरह के हैं, शहरी हैं या ग्रामीण, पेशा कैसा है आदि। इनके जरिए पार्टियां उन लोगों पर भी असर डालती हैं, जो वोट नहीं करते, लेकिन धारणा बनाने में भूमिका निभाते हैं। इसे यूं समझिए, औसत दो लाख की आबादी वाले विधानसभा क्षेत्र में 40 फीसदी तक इंटरनेट पहुंच के साथ डिजिटल माध्यमों के जरिये 75,000 से 80,000 लोगों को प्रभावित करना संभव है। किसी भी विधानसभा चुनाव में 5,000 वोटों का अंतर भी किसी भी जीत-हार का अच्छा अंतर होता है। लोकसभा में यह आंकड़ा चालीस से पचास हजार तक जा सकता है।
बजट का आकलन मुश्किल:
निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के अनुसार, भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान मीडिया विज्ञापनों (प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक, बल्क एसएमएस, केबल वेबसाइट, टीवी चैनल आदि) पर 325 करोड़ और कांग्रेस ने 356 करोड़ रुपये खर्च किए थे। सोशल मीडिया सेक्टर में काम करने वाली दक्ष नियो कम्यूनिकेशन के डायरेक्टर आशुतोष बताते हैं कि निगरानी रखने के बावजूद सोशल मीडिया पर खर्च का सटीक आकलन मुमकिन नहीं। खासतौर पर इन्फ्लूएंसर के बाजार का आकार अज्ञात है। वजह ये है कि कई बार 15-20 हजार का लेनदेन नकद में भी हो जाता है। वहीं, कई पोस्ट के राजनीतिक निहितार्थ होने के बाद भी वह सीधे-सीधे राजनीतिक नहीं होतीं।
प्रचार की रणनीति में बदलाव
भाजपा ने प्रदेश और लोकसभा स्तर पर सोशल मीडिया की प्रचार की रणनीति में बदलाव किया है। प्रदेश के साथ अब पार्टी लोकसभा क्षेत्र के हिसाब से भी सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर व यूट्यूबर के साथ बैठक करने का आलाकमान का निर्देश है। इसमें राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर के नेता इन्फ्लूएंसर व गली-गली के यूट्यूबर के साथ बातचीत करेंगे। दोतरफा संवाद से पार्टी प्रचार रणनीति को आगे बढ़ाएगी।
भाषा और यूजर की पसंद का रखा जाता है ध्यान
सोशल मीडिया विशेषज्ञ आयुष मिश्रा ने बताया कि प्रचार अभियान शुरू करने से पहले इन्फ्लूएंसर संबंधित लोकसभा क्षेत्र का सर्वे करता है। इसमें भाषा की विविधता, यूजर की सोच और पसंद-नापसंद के बारे में पता लगाया जाता है। इस आधार पर कंटेंट का वर्गीकरण किया जाता है। मसलन गुरुग्राम, ग्रेटर नोएडा और फरीदाबाद में देहाती, पंजाबी, भोजपुरी और हरियाणवी बोलने वालों की संख्या काफी है। ऐसे में इनके बीच इसी समूह के इन्फ्लूएंसर को तरजीह दी गई है।
बड़ा प्लेटफार्म बना सोशल मीडिया
आईटी के जानकार डॉ. रोहित उपाध्याय का कहना है कि सोशल मीडिया ऐसा प्लेटफार्म बनकर उभरा है जिससे हम हर घर तक दस्तक दे सकते हैं। इन दिनों हर हाथ में मोबाइल है। चाहे वह झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले लोग हों या रेहड़ी-पटरी वाले। जनसभा, रैली, डोर टू डोर कैंपेन के माध्यम से सभी तक पहुंचना मुश्किल है। सोशल मीडिया से 70 फीसदी लोगों तक पहुंच आसानी से बनाई जा सकती है। भारत में ही नहीं विदेशों में भी इसका प्रचलन काफी बढ़ गया है। एक से दूसरे छोर तक किसी तरह का मैसेज आम लोगों में पहुंचाना है तो इसके लिए चंद समय की ही
आवश्यकता होती है। युवाओं को इससे रोजगार भी मिल रहा है। एआई का उपयोग भी इसमें इन दिनों काफी बढ़ गया है।